Friday 27 January 2012

$$ मर्ज़-ए-इश्क $$

$$ मर्ज़-ए-इश्क $$

दीवानगी भी अजीब रोग लगने लगा है....
बेवजह कोई रातो को जगने लगा है....

एक दिन वही मुझे रुला के जाएगा....
जो होंठो कि मुस्कराहट लगने लगा है....

वही कहेगा मुझे एक दिन लापरवाह....
जिसका ख्याल हर वक्त रहने लगा है....

उसी के दिल कि नफरत मैं बन जाऊंगा....
जो मोहब्बत बनके दिल में रहने लगा है....

ता-उम्र जिसने किसी कि बातें न सुनी....
सभी के ताने हंसके सुनने लगा है....

इन इश्क के मरीजों को समझाना गुनाह है राज....
जिनका सारा वक्त नासमझी में काटने लगा है....

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